जय हिन्द

Saturday, December 11, 2010

ज़िन्दगी का साहिल

क्या कहूँ तुम्हें ???

एक अधुरा ख्वाब जिसके आने से ही....

किसी की साँसे चला करती है....

एक ऐसा जज़्बात जिसे शब्दों में ढालना मुश्किल है...

लेकिन उसके ही दम पर किसी की दुनिया टिकी है...

या फिर....

एक तूफानी लहर कहूँ जिसके थपेड़े ही...

किसी की ज़िन्दगी का साहिल है...

Wednesday, October 20, 2010

अधूरे अरमान....


क्यों हम इन राहो पर आज इतने तन्हा है....
ज़िन्दगी के हर पल मुझे से हैरां है....
राहों पे चलते हुए सोचा करते है...
क्यों मेरा ही साया मुझसे परेशान है...

ये दिल भी चाहता है हँसना...
किसी कि बातो पे हैरां होना...
लेकिन क्यों ये दिल उन...
सारी खुशियों से अनजान है...

क्यों मै अपने अरमानो को...
आसमानों कि सैर कराने से डरती हूँ...
जबकि चारो तरफ मेरे....
खुशियों का सामान है....

हर पल बस इंतज़ार में कटता है....
कि वो लम्हे फिर इस ज़िन्दगी में...
शामिल हो जाए....
लेकिन जानता है ये दिल...
कि ये बस अधूरे अरमान है....






Saturday, October 9, 2010

क्या लिखूं....


लिखना बहुत है लेकिन क्या लिखूं...
पाती लिखूं या किताब लिखूं...
दिल का सारा दर्द कहूँ या....
दिल के सारे अरमान लिखूं....
ज़िन्दगी अधूरे ख्वाबों की बारात है....
आज इसके हर पल का हिसाब लिखूं...
चंद लम्हों में ले गया वो साँसे किसी की....
फिर कैसे गुजरे दिन और रात लिखूं....
खुशियाँ क्या होती है ज़िन्दगी में.....
इन्हें चंद लम्हों की सौगात लिखूं....
दिल का धडकना लिखूं....
या इसे किसी का इंतज़ार लिखूं...
अश्क जो बहा करते है आँखों से उन्हें...
किसी की यादों का एहसास लिखूं...
इस कदर घुटती जाती है ज़िन्दगी किसी की....
कैसे बसर होते है किसी के लम्हात लिखूं...




Saturday, September 18, 2010

एक बार मुस्कुराना चाहती हूँ...


वक्त को आज अपनी मुट्ठी में कैद कर लेना चाहती हूँ...
आज मैं हर लम्हा जी भर के जी लेना चाहती हूँ....
न की कभी कोई ख्वाहिश किसी से....
अब ख्वहिशों का पुलिंदा बनाना चाहती हूँ....
कि आज फिर एक बार मुस्कुराना चाहती हूँ...

जिन राहों पर चलते हुए डगमगाए थे कदम मेरे....
अब उन राहों से फिर एक बार गुजरना चाहती हूँ....
वक़्त की लहरों ने कई थपेड़े दिए....
लेकिन आज उन्ही लहरों को मात देना चाहती हूँ...
कि आज फिर एक बार मुस्कुराना चाहती हूँ...

जिन राहो में चलते हुए कई नकश्तर चुभे है....
हुआ है छलनी मेरा दिल भी....
लेकिन आज उन्ही ज़ख्मो के साथ....
वक़्त को मरहम लगाना चाहती हूँ....
कि आज फिर एक बार मुस्कुराना चाहती हूँ...

कई बार लड़ी थी मैं आसमां से....
कई बार रोना आया था मुझे मेरे हालत पर....
लेकिन आज इसका सिंदूरी रंग देख....
इसी के रंग में रंगना चाहती हूँ.....
कि आज फिर एक बार मुस्कुराना चाहती हूँ...

आज फिर तेरी याद आई है...
उन लम्हों की कसक को अपने साथ लायी है...
आज मै उन्हें याद कर रोना नहीं...
खिलखिलाना चाहती हूँ....
कि आज फिर एक बार मुस्कुराना चाहती हूँ...

Monday, August 30, 2010

कौन सी राह है ज़िन्दगी......???


ये कौन सी राह है ज़िन्दगी...
तू ही बता तुझे है जाना कहाँ ज़िन्दगी....
लुट गया जो एक खुबसूरत सा आशियाना था तेरा....
अब तू ही बता कहाँ है तेरा ठिकाना ज़िन्दगी....

क्या वो तेरे साथ चल पायेगा....
जिसके साथ तुझे है बसाना ज़िन्दगी...
वो कलियाँ तेरे गुलशन कहाँ गयी....
जिससे तू हुआ करती थी गुलज़ार ज़िन्दगी....

तेरे दामन कि खुशियाँ तुने ही लुटाई है....
अब क्यों है तू एक कब्रगाह सी ज़िन्दगी....
अब वो सितारे भी हँसा करते है तुझपे....
जो सजा करते थे कभी तेरे दामन पे ज़िन्दगी...

चलते-चलते धुंधला गए रस्ते सारे...
अब तू बता कहाँ है तेरा हमराह ज़िन्दगी...
करीब आकर भी तू दरिया के....
क्यों है प्यार से तू बेज़ार ज़िन्दगी....

वो जो तेरा साया तुझसे लिपटेगा...
वो ही तेरे छुवन को तरसेगा ....
क्यों कि होगी ना सुबह उस रात की ...
जिससे हो तुझे एक नयी आस ज़िन्दगी.....




Wednesday, August 18, 2010

घरोंदे कि नीव तक हिल गयी.....


एक हँसती खेलती दुनिया किसी कि आज बदल दी गयी....
रस्मो रिवाज़ो के बंधन में जकड़ ली गयी...
तिनको से शुरू किया था....ख्वाबो का घरोंदा बुनना...
लेकिन चंद रिवाज़ो के बिच वो खुद गुम हो कर रह गयी.....

दिन बदला, राते बदली और उनके साथ पूरी तस्वीर भी बदल गयी....
हुई थी नुमाइश उसके सपनो की...लुट ली गयी दुनिया किसी के अरमानो की....
उसने देखा जब अपनों के उदास चेहरों को....तो हर सांस उसकी घुटन में बदल गयी....
आज पहली बार सोचा एक मासूम ने कि क्यों उसे ये जन्म मिला....
और अगर जन्म दिया भी तो क्यों उसकी खुशियाँ किसी और के हवाले कर दी गयी...

उसका यह दोष कम न था कि वो एक लड़की है....
लेकिन कहर बरपा उसके सीने पर जब उसने अपने माँ बाप के चेहरों को हर घड़ी......
अपनी आँखों से उदास होता देखा....
ऐसा क्यों हुआ ?
जब न थी कोई कमी उसमे.... आखिर क्यों
समाज के नियमो में वह पिस गयी....

रस्मो के बिच वो इस कदर फंसी कि
उसके घरोंदे की नीव तक हिल गयी.....

Tuesday, August 10, 2010

गुम होता बचपन.....


ये है हँसने मुस्कुराने के दिन मिलकर मौज उड़ाने के दिन....
आँखों में सपने और कंधो पर स्कूल बैग उठाने के दिन...
एक दिन रह में मिला था कोई पूछ रहा था के बचपन क्या है...
हमने कहा जहा हर दिन एक उम्मीद की किरने उगती है वो ही है बचपन के सुनहरे दिन....
इस बात पर हंस दिया कोई कहने लगा....
हा वो ही बचपन है न जो आज किताबो को छोड़ अपने नन्हे नन्हे हाथो से
दो जून की रोटियों का इंतज़ाम करता है...या फिर वो है जो दिन भर की थकन के बाद इस परेशानी में
सोता है की कल काम मिलेगा या नहीं... कहाँ गुम हो गया वो बचपन......
जो कटा करती थी किसी पेड़ की शाखों के साथ....
जब कभी अँधेरा हो तो सुबह की किरने भी आती थी माँ के आँचल से छन कर ....
जिन नन्हे कदमों को हमने देखा था, खेल खेल में लड़खड़ाते हुए....
आज वो ही बचपन गुम हो चला है समझदारी के जंगलो में....
जब कभी ग़लतियों में डांट मिला करती थी तो रोया करते थे....
बिना किसी की परवाह किये.....
लेकिन आज एक सांस का कतरा भी निकलता है....
समझदारी के पहरों तले... कहाँ गुम हो गए ऐ प्यारे बचपन...
हम इंतज़ार किया करते है....आओ इन समझदारों को भी कुछ अच्छी बात सिखाओ....
जो बात तो किया करते है हँसते हुए....पर चेहरों पर रखते है कई मुखोटे....
आजाओ फिर से सबको प्यार से रहना बता दो....
हम सबको खिलखिलाकर फिर से हंसना सिखा दो.....

Thursday, August 5, 2010

हर पल तन्हा कर चला जाता है....


किसी की याद आती है...
क्यों वो हर बात याद आती है...
सीने में छुपे दर्द को....
वो फिर से जगा जाती है....

क्यों हम फिर से उन राहों पर चल नहीं सकते...
क्या वो एक साथ ही हमारे लिए बाकी है....
क्यों वो मेरा प्यार मुझे छोड़ गया....
जब थी जरुरत तो भीड़ का हो गया...

ऐसे में उसी की ही याद क्यों आती है...
आज मिला है एक साथ नया...पर
डरते है की फिर वाही हाल न हो इस दिल का....
जो हुआ था एक मासूम के प्यार के साथ.....

सोच कर दिल घबराता है...
कई सवालों को दोहराता है...
क्यों वो एक साया बनकर...
मेरे साथ ही आता है....

ख़त्म कर दो उन यादो को....
जला के ख़ाक करदो उन जज्बातों को....
जो पहले धड़का करती थी...
किसी के नाम से ही....

पर आज दिल ने चाहा है....
किसी के साथ चलना....
जीवन राह पर आगे बढ़ना....
फिर क्यों वो यादे बनकर सताता है....
क्यों वो हर पल तन्हा कर चला जाता है....

Monday, July 26, 2010

सपने सी ज़िन्दगी....


ज़िन्दगी भी बड़ी अजीब है....
यहाँ हर किसी का साथ है...
लेकिन जाने कौन किसके करीब है....
सपनो मैं देखा करते थे एक चेहरा जाना पहचाना सा ....
पर सुबह जब आँख खुली तो पता चला वो .....
किसी और का नसीब है.....
झिलमिलाती आँखों से बुना किये एक सपना...
हर जर्रे ने कहा वो सपना है तुम्हारा अपना....
लेकिन वो ख्वाब ही रहा हमेशा ....
न बन पाया वो हमराह किसी का....


Saturday, July 17, 2010

सिर्फ तुम होगे.......


साथ हम चले हैं....पर न जाने कब तक ये साथ होगा....
डरते है जब तुम न होगे....
तो वो आलम कैसा होगा....

सो जायेंगे हम मौत के आगोश में...
और साथ मेरे कोई न होगा....
होगी न सुबह उस रात की...
जब तेरा हाथ मेरे हाथों से छूटेगा...

रह जायेगी एक ख़ामोशी और...
कोई न मेरी मौत का गवाह होगा...
चले जायेंगे दूर सबसे...
और साथ मेरे तेरी यादो का कारवां होगा...

होगी वो रात क़यामत की और....
मेरी ज़िन्दगी का सूरज डूबेगा...
दे जायेंगे हम दुवाओं के तोहफे...
के तुम रहो सबसे आगे...
तुमसे आगे कोई न होगा...

बंद आँखों में तेरी तस्वीर होगी...
और तेरी यादों के साथ शुरू मेरा दूसरा सफ़र होगा...
दूर सितारों में जाके तुम्हे देखा करेंगे...
तब तुम्हे देखने से हमे कौन रोकेगा...

और भी रहेंगे करीब तेरे
हर ख़ुशी में तेरे हर गम में....
तेरी यादो का हकदार मेरे सिवा कोई न होगा...

तुम्हे झिलमिलाती आँखों से देखा करेंगे...
मांगेंगे खुशियाँ तेरे हर एक पल के लिए...
तब मुझसा खुशनसीब कोई न होगा...

जब तक सितारों में रहेंगे ...
तुम्हे हम देखा करेंगे....
और जब तुम ऊपर आओगे तो....
तुम से पहले ......इस सितारे का अंत होगा...
मेरे जीवन में सिर्फ तुम होगे....
और दूसरा कोई न होगा....



Saturday, July 3, 2010

माँ का आँचल....


सुबह की हर दस्तक पर जब माँ मुझे नींद से जगाती थी....
उनींदी अंखियो से हमे चिडियों का गाना सुनाती थी....
उसकी मीठी सी बोली सुन मैं झट से कहता माँ अभी तो रात है....
कुछ देर और सोने दो न....
वो कहती राजा बेटा वो देखो चिड़िया वो तो तुमसे भी छोटी है...
लेकिन वो अपने मुन्ने को लेकर इस समय कही दूर जा रही होती है...
उनकी प्यारी प्यारी बातों से मेरा झट पट उठ जाना...
और दूजे ही पल कई सवाल लेकर मम्मी के आगे पीछे मंडराना...
मेरी उलटे सीधे सवालो को सुन तु झट से हंस देती और कहती मुन्ने राजा तू है बड़ा ही प्यारा...
रोज स्कूल न जाने की जिद्द करना वो चंदा मामा की कहानियाँ सुन उन्हें पाने की जिद्द करना...
सच आज लगता है की वो बचपन कितना प्यारा था....
रोते थे सब के सामने मगर हर कोई हमारा था...
आज तो दिल का हाल बताने में डर लगता है...
माँ आज फिर से तेरे ही आँचल तले छुप जाने को दिल करता है...

आज मेरी जिन्दगानी निकल पड़ी...



आज फिर तेरी यादो की निशानी निकल पड़ी ...
राहों में हमने उसे समझाया तो बहुत...
मगर मुझसे पहले उसकी दीवानी चल पड़ी ...
किस्मत ने बताया था तेरा पता....
समझाया था ऐसे न मिला किसी से...
लेकिन जब तेरा ज़िक्र आया तो...
खुद बा खुद मेरी साँसों की रवानी चल पड़ी ...
एक तेरी ही तलाश में भटका किये दर बदर...
मगर आज जब तू सामने आया तो....
मुझसे दूर मेरी जिंदगानी चल पड़ी...
जब तू मिला हमें एक पल के लिए लगा था...
जैसे ये दिल जनता हो तुझे हमेशा से...
तुझसे हुई बाते और कुछ हसीं मुलाकातों में...
मेरे ख्वाबो की हर निशानी निकल पड़ी....
एक पल ऐसा लगा की ये ख्वाब न टूटेगा कभी...
लेकिन आज जानती हूँ उन यादो की कसक को...
तेरी हर एक याद से टूटा है ये दिल और...
और कभी न ख़त्म होने वाली एक कहानी निकल पड़ी...


Saturday, June 26, 2010

एक तमन्ना...


तमन्ना है तुम्हारे साथ जिने की...
तुम्हारे लिए ही मरने की...
जितनी भी खुशियाँ है इस जहाँ में ....
उन्हें तुम्हारे दामन में भरने की....

राहों में तुम्हारे जितने भी कांटे हो...
उन्हें अपने पलकों से बीनने की...
जिन भी राहों से गुजरो तुम...
उनपर फूल ही फूल बिछाने की...

न हो तुम्हारा सामना गम से कभी....
इतना प्यार तुम्हे देने की...
करलू महफुज दिल में तुम्हे...
मिटा दू थकन ज़माने की...

तमन्ना है तुम पर दिलोजान लुटाने की...
तुम्हे अपना बनाने की...
तुम्हे न हो तमन्ना किसी की
तुम्हारी तमन्ना बन जाने की...

नजरो में बसा के तुम्हे...
सारे जहाँ सी दूर...
एक खुशियों भरे जहाँ में ले जाने की...

ऐ खुदा बस इतनी रहमत कर दे....
मुझे उसका ता उम्र साथ देदे...
वरना ना रहेगी ख्वाहिश....
उसके बिना ज़िन्दगी निभाने की....


Saturday, May 8, 2010

कश्मकश भरी ज़िन्दगी....


ज़िन्दगी यू तनहा कभी ऐसे ना थी....
चलती थी साँसे मगर यू बेजान कभी ऐसे ना थी....
कई राहों पर की राहजनी हमने,
मगर ये राहे इतनी अंजान कभी ऐसे ना थी...
खुशियों की तलाश में चले आये दरिया में बहकर...
मगर ज़िन्दगी यू हैरान कभी ऐसे ना थी.....
राहों में चलते हुए यू तो कई हम कदम मिले...
मगर किसी एक शख्स के लिए इतनी बेचैनी कभी ऐसे ना थी....
क्यों है ये बेचैनी...कई दफे यूही सोचा किये हमने...
मगर हर बात पर इतनी हैरानी कभी ऐसे ना थी....
हर लम्हा गुजार दिया बस एक पल के इंतज़ार में...
मगर यू कश्मकश से भरी ज़िन्दगी कभी ऐसे ना थी....

Saturday, March 27, 2010

हक़ीकत...


दिल के दामन में आज तन्हाई बहुत है....
दर्दे दिल की राह पे रुसवाई बहुत है....

सोचा हमराह के साथ जाऊ दरिया के पार....
मगर क्या करू इस दरिया में गहराई बहुत है.....

साथ मिला हमदम का....
फिर आया मौसम बहारो का....
पर क्या करे इस दुनिया में मिलती बेवफाई बहुत है....

लोग मिलते है बिछड़ जाते है....
यादे बनती है मिट जाती है...

इन्ही यादो के साथ मिटने को तैयार एक ज़िन्दगी खड़ी है....
पर क्या करे उस ज़िन्दगी को मिलती मौत में भी बदनामी बहुत है...

Saturday, March 20, 2010

हर पल बदलती ज़िन्दगी...


ज़िन्दगी बदलती है रंग नये...
रोज दिखाती है ये ढंग नये...
हर पल कांटो भरी सेज ही क्यों...
क्यों नहीं बुनती है ये ख्वाब नये...

पलकों पे कुछ सपने हो...
संग हमारे कुछ अपने हो...
पर फिर भी क्यों नहीं जगती है ये एहसास नये....

कभी तो ढेरो खुशियाँ देती है
तो दूजे पल आँखों में आंसू भर देती है...
पर क्यों नहीं सिखाती है ये जीने के अंदाज नये...

जब हर पल एक याद है ...
और हर किसी के लबो पर बस एक ही फ़रियाद है...
तो क्यों जगाती है ये हर रोज एहसास नये...

जब हर सपनो का टूटना तय है...
और किसी अपने का रूठना तय है...
तो क्यों देती है ये हर पल साथ नये...

ज़िन्दगी तू यु ही तनहा रहती तो अच्छा था...
तुझमे कोई जीने की आस ना रहती तो अच्छा था...
कम से कम कोई ना दे पाता तुझे हर पल इक इल्जाम नये...

Sunday, February 28, 2010

आँखों की ज़बान....



ना जाने कितना दर्द है इन आँखों में,
कि सारी कायनात है डूबी इन आँखों में...
कभी खुशियों का सागर तो कभी,
ग़मों का सैलाब है उमड़ता इन आँखों में....
कभी नीले आसमान सी रंगत तो कभी,
सेहरा सी प्यास है बसी इन आँखों में....
कभी झरने सी शोख चंचल तो कभी....
रेगीस्तान सी वीरानी है इन आँखों में....
कितने ही पड़ाव आये है राहों में,
मगर ना जाने किसका है इंतज़ार इन आँखों में....
ये आँखे जो कभी बोलती है तो कभी,
खामोश रहकर भी सारे राज़ खोलती हैं...
कौन जाने कितने ही अनकहे सवाल छुपे है इन आँखों में....




Monday, February 22, 2010

उन्ही के होते चले गए....




ना जाने कौन सी कशिश थी, उन निगाहों में....
के हम बिन डोर ही खींचे चले गए..
खुद को भी भुला दिया हमने,
और उन्ही के होते चले गए....

अपना सा एहसास लिए,
वो आये एक झोके की तरह...
और हम एक टूटे पत्ते की तरह,
बस हवा में उड़ते चले गए....

उनके प्यार में ऐसे खोये,
की सारी ख़ुशी उनके सदके लुटाते चले गए....
शायद कम पड़े इस उम्र की खुशियाँ सारी,
इसलिए अगले जनम की खुशियाँ भी उनके नाम करते चले गए....

कभी भी ना दे खुदा उन्हें एक अश्क का कतरा भी,
इसी शर्त पर हम अपनी ज़िन्दगी उन पर फनाह करते चले गए...

Saturday, February 20, 2010

अश्कों की ज़बान....



दिल का हाल ये अश्क बताते हैं....
जो अनजाने में आ ही जाते हैं...
कहते हैं अश्कों की ज़ुबान नहीं होती....
मगर ये अनकही भी सुनाते हैं....
सीने में उठी है टीस अभी...
सुना है ये अश्क हे इन्हें सहलाते है...
जब तुम्हे दर्द हो तो ये हमारी आँखों में क्यों आते हैं...
तन्हाई में ये ही सच्चे साथी है...
इसलिए तो ये बिन बुलाये ही चले आते हैं....

Monday, February 15, 2010

मुझे तेरा साथ चाहिये......






ऐ मेरे हम सफ़र मुझे तेरा हाथ चाहिये,
जो कभी न ख़त्म हो ऐसा साथ चाहिये...
जिंदगी की राहों में जब मैं आगे बढ़ू,
तो मुझे तेरा साया दिन रात चाहिये...
कभी बिछड़ जाये राहों में गर,
तो कभी न ख़त्म हो वो आस चाहिये...
ज़िन्दगी की खुशियों में तो, कई हमराह मिलेंगे,
जो हर पल साए की तरह दिन रात रहेंगे....
पर मुझे गम के घने अंधेरो में,
तेरा ही साथ चाहिये...
मिलता है समुन्दर में जैसे मोती को सीपी का सहारा,
एक ऐसे ही रिश्ते की तुझसे सौगात चाहिये...
रहती है चांदनी जिस तरह चाँद के आस पास,
उसी तरह मुझे तेरा एहसास चाहिये...
ऐ मेरे हम सफ़र मुझे तेरा ही साथ चाहिये...

Wednesday, February 10, 2010

मैं जीना चाहती हूँ.....



थाम लो मुझे, अब के गयी तो लौट ना पाउंगी,
राह के अंगारों में, मैं जल ही ....
किस्मत से है पाया साथ तुम्हारा, पर अब के टूटी तो जुड़ ना पाउंगी...
दिल ने की है आरज़ू , मिले हैं सपनो को नए पंख...
अरमा है जाऊं गगन के उस पार....
पर डरती हूँ कहीं, ये पंख मेरे झुलस के ना रह जाए राहों की तपीश से...
उलझ के ना रह जाए मेरे पाँव रिश्तो की जंजीरों से...
अब के जंजीरों में जकड़ी तो, शायद तोड़ ना पाउंगी..
लाख कर लू कोशिश, लौट के ना आ पाऊँगी...
लोग तो होंगे जो हमें जुदा करेंगे, रिश्ते और नातों की दीवारों में...
मुझे बंद कर के रखेंगे, थाम लो थम लो मुझे...
वर्ना मैं घुट के ही मर जाउंगी...
अब के गयी तो फिर लौट ना पाऊँगी...
रह जाएँगी अधूरी मेरी ख्वाहिशें, टूट के बिखर जायेंगे मेरे सपने..
उन सपनो में सिर्फ दर्द होगा तुमसे बिछड़ने का..
गम होगा तो तुम्हारे साथ ना चल पाने का,
जिन राहों पे हमने खायी थी कसमे साथ जीने मरने की..
थाम लो - थाम लो मुझे मैं जीना चाहती हूँ...
तुम्हारी हम राह बनाना चाहती हूँ ...
थाम लो वरना मैं तड़प के मर ही जाउंगी...
अब के गयी तो लौट के ना आ पाउंगी...


Monday, February 8, 2010

ज़िन्दगी...तू डराती क्यों है...??....



हर रोज हम खुद से इक सवाल किया करते हैं, आखिर हम क्यों जिया करते हैं.... लेकिन हर बार ये सवाल मेरे ही अक्स से टकरा कर वापस चला आता हैं.... हर बार की तरह रोज़ ये सोचते हैं कि बस..... अब कुछ और नहीं पूछना इस ज़िन्दगी से.....लेकिन ये बेरहम ज़िन्दगी हमें हर दिन एक नए मोड़ पर ला खड़ा करती है....और फिर मै उसका दमन थाम पूछती हूँ बता क्यों नहीं रहम करती है तू मुझ पर .... क्या सारे इम्तेहान मेरे लिए ही संभाल कर रखे हैं.... इन सारे सवालों के साथ मैं एक बार फिर अकेली हो जाती हूँ.... और ज़िन्दगी फिर मुझे तन्हा कर कहीं दूर निकल जाती है.. किसी कोने में ताकि वो देख सके कि मै किस राह जा रही हूँ.... जिस से फिर वो दुबारा मुझे आसानी से ढूंड ले और अपने साथ बहा ले जाए.....

मेरी अगली कविता इस ज़िन्दगी के उपर लिखी है....

मुझको ऐ ज़िन्दगी हर वक़्त सताती क्यों है....
जुल्म तू अपने दामन के मुझपर ढाती क्यों है....

कभी मिला नहीं सुख चैन मुझको जिने का....
रो चुके हम इतना अब और रुलाती क्यों है....

क्यों रहम नहीं आता तुझको मेरे हालात पर....
सुला दे मुझे, दिन रात जगती क्यों है....

फ़ना हुए हैं जो तुझे प्यार करते हैं.....
मौत को आने दे....
तू उसे डरती क्यों है...

Sunday, February 7, 2010

इंतजार... कभी न ख़त्म होने वाला....







ज़िन्दगी यू हुई बसर तन्हा...........
काफ़िला साथ था और सफर तन्हा.....

हम हमेशा ये क्यों सोचते है की इस ज़िन्दगी में कोई तो हो जिसके कांधे हमारे लिए हमेशा तैयार रहे जब हम उदास हो या इस ज़िन्दगी के दौड़ में भागते भागते थक गए हो.... कोई ये क्यों नहीं सोचता की हर पल क्यों हमारे लिए कोई रहे, जो अपनी खुद की ज़िन्दगी से कुछ पल हमारे लिए निकाले. जब हम उदास हो या थक गाये हो इस दौड़ धुप से भरी ज़िन्दगी से....
क्यों हमे किसी का साथ चाहिए होता है.. क्यों हमें हर पल किसी की तलाश रहती है, जब किसी को हमारी तलाश नहीं रहती तो क्यों हम किसी की तलाश में भटकते हैं...... क्यों हम किसी का इंतजार किया करते है.... आख़िर क्यों होता है हमें किसी का ऐसा इंतज़ार जेहता है, जो कभी ख़त्म ही नहीं होता......


शायद हर किसी को किसी का इंतज़ार रहता है.... ये कविता उनके लीए है जो आज भी किसी का इंतज़ार कर रहे है......
करीब हो मेरे पर है मुझे क्यों तुम्हारे पास आने का इंतजार....
तुम्हारे साँसों की खबर है मुझे पर फिर भी है मुझे तुम्हारे छु जाने का इंतजार....

यू तो है मेरा तुम्हारा रिश्ता सागर से भी गहरा....
पर ना जाने है क्यों तुममे समां जाने का इंतज़ार....

मंज़िल पे खड़ी हूं हाथ बढ़ाये किस्मत भी मेरे आगे सर झुकाए....
पर ना जाने है क्यों हर पल किसी के आने का इंतज़ार...

वो ही जो मेरी मंज़िल है वो ही जो मेरा हमसफर है....
कर रही हूं उसके करीब आने का इंतज़ार....

हर पल बस एक पल का है इंतज़ार....
के वो कब आये और मुझमे समां जाए...
कर रही है मेरी आँखे उसमे गुम होने का इंतज़ार....

हर पल हर घड़ी है बस इंतज़ार..........
अब तो कर रही है मेरी रूह .....
इस इंतज़ार के खत्म होने का इंतज़ार.........