जय हिन्द

Wednesday, August 18, 2010

घरोंदे कि नीव तक हिल गयी.....


एक हँसती खेलती दुनिया किसी कि आज बदल दी गयी....
रस्मो रिवाज़ो के बंधन में जकड़ ली गयी...
तिनको से शुरू किया था....ख्वाबो का घरोंदा बुनना...
लेकिन चंद रिवाज़ो के बिच वो खुद गुम हो कर रह गयी.....

दिन बदला, राते बदली और उनके साथ पूरी तस्वीर भी बदल गयी....
हुई थी नुमाइश उसके सपनो की...लुट ली गयी दुनिया किसी के अरमानो की....
उसने देखा जब अपनों के उदास चेहरों को....तो हर सांस उसकी घुटन में बदल गयी....
आज पहली बार सोचा एक मासूम ने कि क्यों उसे ये जन्म मिला....
और अगर जन्म दिया भी तो क्यों उसकी खुशियाँ किसी और के हवाले कर दी गयी...

उसका यह दोष कम न था कि वो एक लड़की है....
लेकिन कहर बरपा उसके सीने पर जब उसने अपने माँ बाप के चेहरों को हर घड़ी......
अपनी आँखों से उदास होता देखा....
ऐसा क्यों हुआ ?
जब न थी कोई कमी उसमे.... आखिर क्यों
समाज के नियमो में वह पिस गयी....

रस्मो के बिच वो इस कदर फंसी कि
उसके घरोंदे की नीव तक हिल गयी.....

7 comments:

  1. Bahut Sundar evam sanvedanshil rachana...Shubhkaamnae!
    http://kavyamanjusha.blogspot.com/

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  2. भावपूर्ण!!


    एक निवेदन:

    कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये

    वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:

    डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?>
    इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..जितना सरल है इसे हटाना, उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये.

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  3. सुन्दर पोस्ट, छत्तीसगढ मीडिया क्लब में आपका स्वागत है.

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  4. भावनायें लिखने की भी एक अपनी कला है !
    good one

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