जय हिन्द

Saturday, May 5, 2012

मैंने भी एक सपना देखा है...



कैसे कहूँ जो दिल में है...
डरती हूँ कही तुम रूठ ना जाओ...
कई बार कहने कि कोशिश कि तुमसे...
मगर हर बार लगा की तुम कह रहे हो ये ना हो सकेगा कभी...

तुम चली जाओ मुझसे दूर....
मैं भी रह लूँगा दूर तुमसे...
बस इसी डर से मै नहीं कह पायी तुमसे अपने मन की बात...
डर जाती थी तुम्हारी ख़ामोशी से इसलिए...
नहीं बयां कर पायी मैं अपने ज़जबात....

नहीं चाहती की हमारे बीच दूरियां आयें...
हम हर बात पर एक दूजे से खफा हो जाए...
ज़िन्दगी का सफ़र हो जायेगा हसीन अगर हम दोनों साथ मुस्कुराएँ...
जानती हूँ तुम्हारी कुछ जिम्मेदारियां हैं...चाहती हूँ तुम उनसे कभी जी ना चुराओ 
मै हर कदम पे साथ हूँ तुम्हारे....लेकिन मैंने भी एक सपना देखा है...
आसमां को कैद होते मेरी बाहों में देखा है...

चाहती हूँ बस तुम्हारा साथ... पूरे मन से जीना चाहती हूँ उस सपने को...
ये नहीं कहती कि तुम्हारे और मेरे रस्ते अलग हो जाएँ....
हम क्यों ना एक ही रास्ता अपनाए...
फ़र्ज़ तुम अपना भी निभाओ और साथ चलते चलते हम अपनी मजिल पा जाएँ...






Tuesday, May 1, 2012

क्या तुम वही हो....


तुम  वही हो जिसे दिल  ने चाहा था...
नजरों ने जिसे एक  ही झलक  में दिल  में उतारा था...

मिलती हूँ तुमसे तो हरपल  अहसास  यही होता है
तुम  होते हो कहीं और तुम्हारा दिल  कहीं होता है....

कहा था तुमने मैं वक्त  नहीं हूँ
जो बदल  जाऊंगा हर घड़ी... आज  थामा  है तेरा दामन  तो छुटेगा
ना ये कभी....

आज  मैं हूँ तुम्हारे साथ ... मगर लगता है की वो अहसास  सो गए हैं...
हम  क्यों एक  दायरे में सिमट  कर खो गए  हैं...

चाहती हूँ तुम  समझो  हर एक  ज़ज्बात  को
कहीं ऐसा ना हो, हम  किस्मत  के हाथों बंध  जाएँ...
तब  मैं तुम्हारे पास  रहूँ लेकिन  मेरी रूह रास्ते  में कहीं गुम  हो जाए ....


पल का हिसाब...



इसी उधेड़ बुन में कट रही है ज़िन्दगी अब तो....
किसी रोज तुम मिल जाओ राहों में गर...
हम लेगें हर एक पल का हिसाब तुमसे...
जब ज़िन्दगी से जाना ही था तुम्हें....
तो क्यों कर गए झुठे वादे हमसे...