वक्त को आज अपनी मुट्ठी में कैद कर लेना चाहती हूँ...
आज मैं हर लम्हा जी भर के जी लेना चाहती हूँ....
न की कभी कोई ख्वाहिश किसी से....
अब ख्वहिशों का पुलिंदा बनाना चाहती हूँ....
कि आज फिर एक बार मुस्कुराना चाहती हूँ...
जिन राहों पर चलते हुए डगमगाए थे कदम मेरे....
अब उन राहों से फिर एक बार गुजरना चाहती हूँ....
वक़्त की लहरों ने कई थपेड़े दिए....
लेकिन आज उन्ही लहरों को मात देना चाहती हूँ...
कि आज फिर एक बार मुस्कुराना चाहती हूँ...
जिन राहो में चलते हुए कई नकश्तर चुभे है....
हुआ है छलनी मेरा दिल भी....
लेकिन आज उन्ही ज़ख्मो के साथ....
वक़्त को मरहम लगाना चाहती हूँ....
कि आज फिर एक बार मुस्कुराना चाहती हूँ...
कई बार लड़ी थी मैं आसमां से....
कई बार रोना आया था मुझे मेरे हालत पर....
लेकिन आज इसका सिंदूरी रंग देख....
इसी के रंग में रंगना चाहती हूँ.....
कि आज फिर एक बार मुस्कुराना चाहती हूँ...
आज फिर तेरी याद आई है...
उन लम्हों की कसक को अपने साथ लायी है...
आज मै उन्हें याद कर रोना नहीं...
खिलखिलाना चाहती हूँ....
कि आज फिर एक बार मुस्कुराना चाहती हूँ...
स्मृतियाँ भी दोस्ती और बैर खूब जानती हैं....है न
ReplyDeleteजिन राहों पर चलते हुए डगमगाए थे कदम मेरे....
ReplyDeleteअब उन राहों से फिर एक बार गुजरना चाहती हूँ....
वक़्त की लहरों ने कई थपेड़े दिए....
लेकिन आज उन्ही लहरों को मात देना चाहती हूँ...
कि आज फिर एक बार मुस्कुराना चाहती हूँ...
बहुत सुंदर पंक्तियां...बहुत अच्छा लिखा है
Beautiful composition
ReplyDeleteToo good....
ReplyDeletebeautifully written...thanks archana
ReplyDeleteaapki kavitao me ek dard chipa sa lagata hai...padkar aisa lagta hai jaise kai dard dil me chupa rakhe hai....God bless u ! thanks archana
ReplyDeleteaap sabhi ka tahe dil se dhanyawaad...
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