जय हिन्द

Wednesday, February 10, 2010

मैं जीना चाहती हूँ.....



थाम लो मुझे, अब के गयी तो लौट ना पाउंगी,
राह के अंगारों में, मैं जल ही ....
किस्मत से है पाया साथ तुम्हारा, पर अब के टूटी तो जुड़ ना पाउंगी...
दिल ने की है आरज़ू , मिले हैं सपनो को नए पंख...
अरमा है जाऊं गगन के उस पार....
पर डरती हूँ कहीं, ये पंख मेरे झुलस के ना रह जाए राहों की तपीश से...
उलझ के ना रह जाए मेरे पाँव रिश्तो की जंजीरों से...
अब के जंजीरों में जकड़ी तो, शायद तोड़ ना पाउंगी..
लाख कर लू कोशिश, लौट के ना आ पाऊँगी...
लोग तो होंगे जो हमें जुदा करेंगे, रिश्ते और नातों की दीवारों में...
मुझे बंद कर के रखेंगे, थाम लो थम लो मुझे...
वर्ना मैं घुट के ही मर जाउंगी...
अब के गयी तो फिर लौट ना पाऊँगी...
रह जाएँगी अधूरी मेरी ख्वाहिशें, टूट के बिखर जायेंगे मेरे सपने..
उन सपनो में सिर्फ दर्द होगा तुमसे बिछड़ने का..
गम होगा तो तुम्हारे साथ ना चल पाने का,
जिन राहों पे हमने खायी थी कसमे साथ जीने मरने की..
थाम लो - थाम लो मुझे मैं जीना चाहती हूँ...
तुम्हारी हम राह बनाना चाहती हूँ ...
थाम लो वरना मैं तड़प के मर ही जाउंगी...
अब के गयी तो लौट के ना आ पाउंगी...


5 comments:

  1. Wonderfull Peotry........easy to understand n impressive !!

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  2. ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी...वाह.सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.

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  3. really very touchy.... something from heart..... sare emotions shabdo me likh diye.... its really tough but great you have done it.....

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