जय हिन्द

Monday, February 22, 2010

उन्ही के होते चले गए....




ना जाने कौन सी कशिश थी, उन निगाहों में....
के हम बिन डोर ही खींचे चले गए..
खुद को भी भुला दिया हमने,
और उन्ही के होते चले गए....

अपना सा एहसास लिए,
वो आये एक झोके की तरह...
और हम एक टूटे पत्ते की तरह,
बस हवा में उड़ते चले गए....

उनके प्यार में ऐसे खोये,
की सारी ख़ुशी उनके सदके लुटाते चले गए....
शायद कम पड़े इस उम्र की खुशियाँ सारी,
इसलिए अगले जनम की खुशियाँ भी उनके नाम करते चले गए....

कभी भी ना दे खुदा उन्हें एक अश्क का कतरा भी,
इसी शर्त पर हम अपनी ज़िन्दगी उन पर फनाह करते चले गए...

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