जय हिन्द

Sunday, February 7, 2010

इंतजार... कभी न ख़त्म होने वाला....







ज़िन्दगी यू हुई बसर तन्हा...........
काफ़िला साथ था और सफर तन्हा.....

हम हमेशा ये क्यों सोचते है की इस ज़िन्दगी में कोई तो हो जिसके कांधे हमारे लिए हमेशा तैयार रहे जब हम उदास हो या इस ज़िन्दगी के दौड़ में भागते भागते थक गए हो.... कोई ये क्यों नहीं सोचता की हर पल क्यों हमारे लिए कोई रहे, जो अपनी खुद की ज़िन्दगी से कुछ पल हमारे लिए निकाले. जब हम उदास हो या थक गाये हो इस दौड़ धुप से भरी ज़िन्दगी से....
क्यों हमे किसी का साथ चाहिए होता है.. क्यों हमें हर पल किसी की तलाश रहती है, जब किसी को हमारी तलाश नहीं रहती तो क्यों हम किसी की तलाश में भटकते हैं...... क्यों हम किसी का इंतजार किया करते है.... आख़िर क्यों होता है हमें किसी का ऐसा इंतज़ार जेहता है, जो कभी ख़त्म ही नहीं होता......


शायद हर किसी को किसी का इंतज़ार रहता है.... ये कविता उनके लीए है जो आज भी किसी का इंतज़ार कर रहे है......
करीब हो मेरे पर है मुझे क्यों तुम्हारे पास आने का इंतजार....
तुम्हारे साँसों की खबर है मुझे पर फिर भी है मुझे तुम्हारे छु जाने का इंतजार....

यू तो है मेरा तुम्हारा रिश्ता सागर से भी गहरा....
पर ना जाने है क्यों तुममे समां जाने का इंतज़ार....

मंज़िल पे खड़ी हूं हाथ बढ़ाये किस्मत भी मेरे आगे सर झुकाए....
पर ना जाने है क्यों हर पल किसी के आने का इंतज़ार...

वो ही जो मेरी मंज़िल है वो ही जो मेरा हमसफर है....
कर रही हूं उसके करीब आने का इंतज़ार....

हर पल बस एक पल का है इंतज़ार....
के वो कब आये और मुझमे समां जाए...
कर रही है मेरी आँखे उसमे गुम होने का इंतज़ार....

हर पल हर घड़ी है बस इंतज़ार..........
अब तो कर रही है मेरी रूह .....
इस इंतज़ार के खत्म होने का इंतज़ार.........

2 comments:

  1. आपकी ये पोस्ट पढ़कर और आपकी लिखी इस कविता को पढ़कर यकायक मैं उस लम्हे में पहुँच गया जहाँ एक लड़की पर्दे पर ये गाना गुनगुना रही थी...

    इंतज़ार,
    मेरी सुबहों को
    तेरी शामों का
    मेरी शामों को....

    इंतज़ार....

    शायद वह फिल्म 'पाप' थी

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