जय हिन्द

Saturday, February 5, 2011

गुजारनी ये ज़िन्दगी है.....





आँखों में मेरे एक ही मंजर है...
दूर तक फैला रेत का समन्दर है...

कभी तो मिलेगी मुझसे ज़िन्दगी मेरी...
बस इस उम्मीद पे ही इस ज़िन्दगी की शम्मा रौशन है...

चार दिन कि ज़िन्दगी है अपनी...
और कांटो भरा सफ़र है....

कतरे कतरे में गुज़र रही है ज़िन्दगी अब तो....
और हर लम्हा गुजरता है ऐसे जैसे एक सदी है...

कट रही है ज़िन्दगी कुछ इस तरह...
जैसे कोई उम्मीद हो जीने की....

हम बन गए है गुनाहगार और
सजा में गुजारनी ये ज़िन्दगी है.....


4 comments:

  1. jindagi se kuchh naraaz ho kya tum???
    jine ki jidd hai jindagi....

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  2. हौंस्लों से बुलंद है ये जिंदगी
    गुलों से गुलज़ार है ये जिंदगी
    उम्मीदों से सराबोर है ये जिंदगी
    जिंदा रहने की जिद्द है ये जिंदगी.............

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