जय हिन्द

Saturday, May 8, 2010

कश्मकश भरी ज़िन्दगी....


ज़िन्दगी यू तनहा कभी ऐसे ना थी....
चलती थी साँसे मगर यू बेजान कभी ऐसे ना थी....
कई राहों पर की राहजनी हमने,
मगर ये राहे इतनी अंजान कभी ऐसे ना थी...
खुशियों की तलाश में चले आये दरिया में बहकर...
मगर ज़िन्दगी यू हैरान कभी ऐसे ना थी.....
राहों में चलते हुए यू तो कई हम कदम मिले...
मगर किसी एक शख्स के लिए इतनी बेचैनी कभी ऐसे ना थी....
क्यों है ये बेचैनी...कई दफे यूही सोचा किये हमने...
मगर हर बात पर इतनी हैरानी कभी ऐसे ना थी....
हर लम्हा गुजार दिया बस एक पल के इंतज़ार में...
मगर यू कश्मकश से भरी ज़िन्दगी कभी ऐसे ना थी....

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